सबक सिखाने वाले चुनाव के नतीजे

महाराष्ट और हरियाणा के विधानसभा नजर आए। दोनों राज्यों के नतीजे भाजपा कांग्रेस गुटबाजी से ग्रस्त दिखने के साथ चुनाव नतीजे यही स्पष्ट कर रहे हैं कि को चिंतित करने के साथ ही उसके मुद्दों के अभाव से जूझ रही थी उसने राजनीतिक हालात लगातार बदलते रहते आत्मविश्वास पर असर डालने वाले हैं। पिछली बार के मुकाबले दूनी सीटें हासिल हैं। चंद माह पहले लोकसभा चुनावों में हरियाणा में भाजपा ने आसानी से कर ली और नई बनी जननायक जनता भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और अमित बहुमत का जुगाड़ कर लिया पार्टी ने 10 सीटें हासिल कर लीं। जब यह शाह के कुशल प्रबंधन में देश के अन्य हरियाणा में तो विपक्ष ने एक तरह से लग रहा था कि त्रिशंकु विधानसभा के अनेक हिस्सों के साथ महाराष्ट और भाजपा का विजय रथ ही रोक दिया। यहां कारण हरियाणा में सरकार गठन में देरी हरियाणा में भी शानदार जीत हासिल की भाजपा ने 75 पार का लक्ष्य तय किया था, होगी तब भाजपा ने बडी आसानी से थी, लेकिन विधानसभा चुनावों में इन लेकिन उसे बहुमत के लिए जरूरी 46 बहुमत का जुगाड़ कर लिया। पहले दोनों राज्यों में विपक्षी दल उसे चनौती देते सीटें भी नहीं मिलीं। इसके विपरीत जो करीत करीत आ गए, फिर जननायक जनता पार्टी गुल खिलाता है? अगर शिवसेना ही मोदी सरकार को घेरते रहे। उनके पास उसके साथ सरकार में शामिल होने को सौदेबाजी की अपनी ताकत का जरूरत से राफेल सौदे में गडबडी और चंद तैयार हो गई। ___ ज्यादा इस्तेमाल करती है तो भाजपा से उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाए जाने के जेजेपी के सरकार में शामिल होने से उसके संबंधों में फिर से खटास आ सकती वही पुराने जुमले थे जो वह लोकसभा स्थायित्व की गारंटी मिली है और उसका असर सरकार के कामकाज चुनाव में उछाल चुके थेजननायक जनता पार्टी के सरकार में पर भी पड़ सकता हैविधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय मुद्दे ही शामिल होने से एक ओर जहां भावी हरियाणा और महाराष्ट्र में क्षेत्रीय और कारगर रहते हैंसरकार को स्थायित्व की गारंटी मिली स्थानीय मसले भारी पडे पता नहीं कांग्रेस नेतत्व अपनी वहीं भाजपा दागी छवि वाले विधायक महाराष्ट और हरियाणा में भाजपा ने जम्मू- कमजोरियों को कब समझेगा, लेकिन गोपाल कांडा का समर्थन लेने की तोहमत कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र कम से कम महाराष्ट और हरियाणा के से बच गई। अगर संगीन आरोपों से घिरे सरकार के फैसले को जोर-शोर से नतीजों से भाजपा को तो यह समझना ही गोपाल कांडा के समर्थन से भाजपा प्रचारित किया था। इसके अलावा उसने होगा कि विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय सरकार बनाती तो उसके लिए अपनी छवि सीमाओं की सुरक्षा समेत राष्टवाद को भी मुद्दे ही कारगर रहते हैं। अगर राज्य बचाना मुश्किल हो जाता। यह अच्छा भुनाने की कोशिश की, लेकिन नतीजे सरकारें क्षेत्रीय मसलों को सही ढंग से हल हुआ कि भाजपा ने कांडा से दूरी बनाना बता रहे हैं कि क्षेत्रीय और स्थानीय मसले नहीं करेंगी तो फिर राष्ट्रीय मुद्दे उनके लिए बेहतर समझा। जननायक जनता पार्टी के भारी पड़े। इसके अलावा यह भी दिख रहा मददगार नहीं हो सकते। विधानसभा भाजपा के साथ आने से भाजपा को जाटों है कि जाति-बिरादरी से जुड़े मसलों ने भी चुनावों में मतदाता यह देखता है कि राज्य की नाराजगी दूर करने में भी मदद अपना असर दिखाया। जहां हरियाणा में सरकार ने उसकी रोजमर्रा की समस्याओं मिलेगी, लेकिन यह सामान्य बात नहीं कि जाटों की नाराजगी मुद्दा बनी वहीं महाराष्ट को सुलझाने के लिए क्या किया, न कि खट्टर सरकार यह समझ ही नहीं सकी कि में एनसीपी के शरद पवार ने मराठा कार्ड यह कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय महत्व के दाता उन्हें सत्ता से बाहर करने का खेला। उन्होंने खुद पर लगे भ्रष्टाचार के सवालों को किस तरह हल किया? यह मन बना चुके थे।


आरोपों को भी अपने पक्ष में ने का एक महत्वा महाराष्ट्र में शिवसेना की सौदेबाजी से काम कियाशायद इसी कारण एनसीपी विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय मुद्दे ही सरकार के गठन में विलंब के मुकाबले कांग्रेस पिछड़ गई। कारगर रहते हैं - पता नहीं कांग्रेस नेतृत्व यह आश्चर्यजनक है कि जिस हरियाणा में हरियाणा और महाराष्ट में कांग्रेस की अपनी कमजोरियों को कब समझेगा, सरकार बनने में देरी के आसार दिख रहे थे सफलता में सोनिया-राहुल का लेकिन कम से कम महाराष्ट्र और हरियाणा वहां तो सरकार का गठन पहले सुनिश्चित योगदान अधिक नहीं के नतीजों से भाजपा को तो यह समझना हो गया और जिस महाराष्ट्र में भाजपा- ध्यान रहे कि हरियाणा की तरह महाराष्ट्र में ही होगा कि विधानसभा चनावों में क्षेत्रीय शिवसेना ने आसानी से बहुमत हासिल भी कांग्रेस गुटबाजी से ग्रस्त थी।


कांग्रेस मुद्दे ही कारगर रहते हैं। अगर राज्य किया वहां सरकार गठन में विलंब होता हरियाणा में तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में सरकारें क्षेत्रीय मसलों को सही ढंग से हल दिख रहा है। इसका कारण शिवसेना की फिर से खड़ी होती दिखी, लेकिन महाराष्ट नहीं करेंगी तो फिर राष्टीय मुद्दे उनके लिए ओर से सौदेबाजी करना है। वह ढाई-ढाई में उसका प्रदर्शन फीका ही रहा। इन दोनों मददगार नहीं हो सकतेविधानसभा साल तक बारी-बारी से सत्ता संभालने के राज्यों में कांग्रेस को जो भी सफलता चनावों में मतदाता यह देखता है कि राज्य फार्मूले पर जोर दे रही है। चूंकि महाराष्ट्र में मिली उसमें सोनिया-राहुल का योगदान सरकार ने उसकी रोजमर्रा की समस्याओं भाजपा उम्मीद से कम एक सौ पांच सीटें मुश्किल से ही नजर आता है। सोनिया को सुलझाने के लिए क्या किया, न कि ही जीत सकी इसलिए 56 सीटें हासिल गांधी ने महाराष्ट्र में गिनती की सभाएं कीं। यह कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय महत्व के करने वाली शिवसेना उस पर अपना दबाव उनके मुकाबले राहुल ने ज्यादा सभाएं सवालों को किस तरह हल किया? यह बढा रही है। देखना है कि यह दबाव क्या की, लेकिन वह घिसे-पिटे मुद्दों के सहारे एक महत्वपूर्ण पहलू है।