जब छत्तीसगढ़ की सियासत अंड़े पर उबाल मार रही हो तो ऐसे समय में अंडे को कुपोषण मुक्ति का एक बेहतर रास्ता बताने वालों के लिए यह चिंतन भी जरूरी हो जाता है कि क्या वाकई अंडा खाने से बच्चों का कुपोषण दूर हो जाता है.... या कुपोषण दूर हो जाएगा? इस सवाल के जवाब में लोगों के मत मतांतर तो स्वभाविक है पर यदि अंडा खाने से बच्चों का कुपोषण दूर हो जाता है तो फिर छतीसगढ़ में कुपोषित बच्चों की संख्या चार लाख, 92 हजार 176 कैसे पहुंच गई ? छत्तीसगढ़ के लिए इससे बड़ी शर्मनाक स्थिति और क्या हो सकती है जब 19 साल के उम्र में भी उसे कुषोषण से छुटकारा नहीं मिला है। प्रतिवर्ष अरबों रूपए कुपोषण मुक्ति के नाम पर खर्च किए जाने के बाद भी राज्य में लगातार बढ़ रहे कुपोषित बच्चों का आंकडा यह प्रमाणित करता है कि योजना की राशि का जमीनी पर स्तर पूरी ईमानदारी के साथ क्रियान्वयन नहीं हो रहा है? कुल मिलाकर यह कहा जाए कि सरकारी कारिंदा और योजना का जिम्मेदार महिला बाल विकास विभाग तथा उससे जुड़ा अमला कुपोषण मुक्ति की आड़ में केवल अपना पोषण करने में लगा हुआ है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी?
अब सवाल यह उठता है कि पूर्व की भाजपा सरकार ने जब सरकारी स्कूलों और आंगनबाडियों में कुपोषण दूर करने को लेकर बच्चों को हरी सब्जियां और प्रोटीन युक्त भोजन खिलाने का काम किया था तो फिर प्रदेश में कुपोषित बच्चों के ये आंकड़े कहां से आ गए जो वर्तमान कांग्रेस सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती अनिला भेडिया ने हाल ही विधानसभा के मानसून सत्र में एक विधायक के जवाब में प्रस्तुत किए हैं ?